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Showing posts from April, 2022

आक्सीजन परिवार की विवेचना या सामान्य लक्षण

1. इलेक्ट्रानिक विन्यास - आक्सीजन परिवार के तत्वों के बहरी कोस का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक nS ²,nP ⁴   प्रकार का होता है। Ex - O(8)- 1S ²,2S ²,2P ⁴         S(16)- 1S ²,2S ²,2P ⁶,3S ²,3 P ⁴ 2. संयोजकता - आक्सीजन परिवार की सामान्य संयोजकता 2 होती हैं। लेकिन वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर यह परिवर्ती संयोजकता भी प्रदर्शित करते है। 3. अक्सीकारण संख्या - आक्सीजन परिवार की सामान्य आवसीकारक संख्य -2 होती है। लेकिन ऊपर से नीचे जाने पर यह परिवर्ती आवसीकारक संख्य प्रदर्शित करता है।   4. परमाणु त्रिज्या - वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर परमाणु त्रिज्या का मान बढ़ता है। क्योकि कोशों की संख्या बढ़ती है। इसलिए इस वर्ग में आक्सीजन की सबसे परमाणु कम होता है। O<S<Se<Te<Po 5. आयनन विभव - वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर आयनन विभव का मान घटता है। इसलिए इस वर्ग मे आक्सीजन के आयनन विभव का सबसे अधिक होता है। O>S>Se>Te>Po 6. इलेक्ट्रॉन बन्धुता - वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर इलेक्ट्रान बन्धुता का मान घटता है। इसलिए आक्सीजन का इलेक्ट्रान बन्धुता का मान सबसे अधिक होता है। O>S>Se>Te>Po 7. व

हिन्दी साहित्य का काल विभाजन

 हिन्दी साहित्य का काल विभाजन काल विभाजन के सम्बन्ध में सबसे पहला प्रयास जॉर्ज ग्रियर्सन का है उनके द्वारा किया गया काल-विभाजन निम्नलिखित है। - चारण काल 700-1300 ई.। 15वीं शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण। जायसी की प्रेम कविता।  ब्रज का कृष्ण सम्प्रदाय।  मुगल दरबार। तुलसीदास। रीतिकाव्य। तुलसी के अन्य परवर्ती। 18वीं शताब्दी। कम्पनी के शासन में हिन्दुस्तान। महारानी विक्टोरिया के शासन में हिन्दुस्तान। मिश्र बन्धुओं ने अपनी पुस्तक 'मिश्रबन्धु विनोद' (1913) में काल विभाजन का एक नया प्रयास किया जो ग्रियर्सन के काल विभाजन से ज्यादा विकसित है। उनका विभाजन इस प्रकार है।  1. प्रारम्भिक काल- पूर्वारम्भिक काल (700-1343 वि.) उत्तरारम्भिक काल (1344-1444 वि.)   2. माध्यमिक काल- पूर्वामाध्यमिक काल (1445-1560 वि.) प्रौढ़ माध्यमिक काल (1561-1680 वि.) 3.अलंकृत काल- पूर्वालंकृत काल (1681-1790 वि.) उत्तरालंकृत काल (1791-1889 वि.) 4. परिवर्तन काल (1890-1924 वि.)  5. वर्तमान काल 1926 वि. से अब तक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास (1929 ई.) में काल विभाजन इस प्रकार किया है।- 1. आदिकाल या

नाइट्रिक अम्ल (HNO₃) बनाने की विधियां

नाइट्रिक अम्ल (HNO₃) बनाने की विधियां आस्टवाल्ड विधि वर्कलैण्ड और आइङ की विधि 1. ओस्टवाल्ड  विधि - अमोनिया (NH ₃ ) और वायु के मिश्रण को उत्प्रेरक कक्ष में ले जाते है जहाँ Pt उत्प्रेरक की उपस्थित मे 800°C ताप पर गर्म करते है। तो NO प्राप्त होता है। इसे आक्सीकारक कक्ष में ले जाते है। जहाँ NO का आक्सीकरण NO ₂ में हो जा ता है| NO ₂ को अवशोषक कक्ष में ले जाते है। जहाँ जल धीरे-धीरे टपकता रहता है। जिसमे यह अवशोषित होकर HNO ₃ का निर्माण होता है। उत्प्रेरक कक्ष में - 2 NH ₃+3 O ₂ ➡ 2 NO+3H ₂O आक्सीकारक कक्ष में - 2NO+ O ₂  ➡ 2 NO ₂ अवशोषक कक्ष में -  2 NO ₂+ H ₂O  ➡  HNO ₃+  HNO ₂ 2. वर्कलैण्ड और आइङ की विधि - इस विधि में नाइट्रोजन और वायु के मिश्रण को आर्कमट्टी मे ले जाकर गर्म गैसों की सहायता से 3000 °C ताप तक गर्म करते है । जिससे NO प्राप्त होता है । फिर NO को कूलर मे ले जाकर इसे 1000°C ताप तक ठण्डा करते है। फिर बायलर मे ले जाकर इसे 150°C ताप तक ठण्डा करते है। फिर इसे आवसीकारक कक्ष मे ले जाते है। जहाँ NO का आक्सीकरण NO ₂ में हो जा ता है| NO ₂ को अवशोषक कक्ष में ले जाते है। जह

हैबर विधि से अमोनिया का निर्माण तथा उपयोग

हैबर विधि से अमोनिया का निर्माण हैबर विधि- इस विधि में वातावरण से प्राप्त N ₂ व भाप अंगार गैस से प्राप्त H ₂ को 1:3 के अनुपात में लेकर सम्पीडक कक्ष ले जाते हैं। और अशुद्ध गैसीय मिश्रण प्राप्त करते है। इस मिश्रण को शोधन में ले जाते है। जहाँ सोडा (NaOH + CaO) भरा होता है। जो CO ₂ , SO ₂ , H ₂ S आदि की अशुद्धिया दूर हो जाती है। और शुद्ध गैसीय मिश्रण प्राप्त है। अब इस मिश्रण को उत्प्रेरक कक्ष में ले जाते है।जहाँ fe उत्प्रेरक तथा Mo उत्प्रेरक वर्धक की उपस्थित मे 200 atm दाब तथा 500° ताप तक गर्म करके अमोनिया गैस प्राप्त करते है। अमोनिया गैस को संघनित्र में रखकर ठण्डा कर देते है शेष बची N ₂ +H ₂ को सरकुलेशन पम्प की सहयता से पुनः उत्प्रेरक कक्ष में भेज देते है। और यह प्रकृया इसी प्रकार चलती रहती है। और गैस प्राप्त होती है। N ₂+3H ₂ ➡ 2NH ₃ अमोनिया क्या है इसे बनाने की प्रयोगशाला विधिया

अमोनिया क्या है इसे बनाने की प्रयोगशाला विधिया

  अमोनिया  (NH ₃) सन् 1774 ईसवी - वैज्ञानिक पिस्टले (खोज) सन् 1785 ईसवी -वैज्ञानिक बेर्तोलो (संघटन सूत्र) सन् 1800 ईसवी - वैज्ञानिक डेवी (अणुसूत्र ) अणुसूत्र - NH ₃ प्रयोगशाला विधि से अमोनिया का निर्माण प्रयोगशाला विधि- एक गोल पेंदी का फलाक्स में नौसादर + बुझा चुना युक्त मिश्रण लेते हैं। इसे धीरे- धीरे बर्नर की सहायता से गर्म करते है। जिससे रासायनिक क्रिया होती है और नम युक्त आयोनिया प्राप्त होती है। इसे CaO की नली में प्रवाहित करते है। जिससे नमी की शुष्क अशुद्धि दूर हो जाती है।और अमोनिया गैस प्राप्त होती है। इसे गैसजार में एकत्रित कर लेते है। 2NH ₄ Cl + Ca(OH)₂ ➡ 2 NH ₃ +2H₂0 + CaCl₂ हैवर विधि से अमोनिया का निर्माण

नाइट्रोजन परिवार की विवेचना या सामान्य लक्षण

    नाइट्रोजन परिवार 1. इलेक्ट्रानिक विन्यास - नाइट्रोजन परिवार के तत्वों के बहरी कोस का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक nS ²,nP ³  प्रकार का होता है। Ex - N(7)- 1S ²,2S ²,2P ³        P(15)- 1S ²,2S ²,2P ⁶,3S ²,3 P ³ 2. संयोजकता - नाइट्रोजन परिवार की सामान्य संयोजकता 3 होती हैं। लेकिन वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर यह परिवर्ती संयोजकता भी प्रदर्शित करते है। 3. अक्सीकारण संख्या - नाइट्रोजन परिवार की सामान्य आवसीकारक संख्य -3 होती है। लेकिन ऊपर से नीचे जाने पर यह परिवर्ती आवसीकारक सरत्या प्रदर्शित करता है।   4. परमाणु त्रिज्या - वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर परमाणु त्रिज्या का मान बढ़ता है। क्योकि कोशों की संख्या बढ़ती है। इसलिए इस वर्ग में नाइट्रोजन की सबसे परमाणु कम होता है। N<P<As<Sb<Bi 5. आयनन विभव - वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर आयनन विभव का मान घटता है। इसलिए इस वर्ग मे नाइट्रोजन के आयनन विभव का सबसे अधिक होता है। N>P>As>Sb>Bi 6. इलेक्ट्रॉन बन्धुता - वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर इलेक्ट्रान बन्धुता का मान घटता है। इसलिए नाइट्रोजन का इलेक्ट्रान बन्धुता का मान सबसे अधिक होता

महादेवी वर्मा जी का जीवन/साहित्यिक परिचय

 महादेवी वर्मा जी का जीवन/साहित्यिक परिचय  नाम -  महादेवी वर्मा   जन्म -  सन 1907 ई जन्म स्थान -  फर्रुखाबाद(उत्तर प्रदेश)   माता का नाम -   हेमरानी   पिता का नाम -  श्री गोविंद सहाय  पुरस्कार -  पद्मभूषण, पद/प्रसिद्धि -   विधान परिषद की मंजूरी मनोनीत सदस्य  मृत्यु -  11 सितंबर 1987  जीवन  परिचय- आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध महादेवी वर्मा जी का जन्म सन 1907 में फर्रुखाबाद(उत्तर प्रदेश) में होली के दिन हुआ था यह शिक्षित कायस्थ परिवार से थी इनके पिता श्री गोविंद सहाय इंदौर के एक कॉलेज में अध्यापक पद पर थे तथा माता हेमरानी हिंदी व संस्कृत की ज्ञाता थी  जो सरल ह्रदय, धर्म परायण महिला  तथा साधारण कवित्री थी शिक्षित परिवार में जन्म होने के कारण वह तीव्र बुद्धि वाली थी इन्होंने बचपन में  माँ द्रारा, महाभारत, रामायण व अन्य पुराणों  की कथाएं सुनने के कारण इनके मन में साहित्य के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो गया था फलतः  इन्होंने छोटी सी आयु में मौलिक काव्य रचनाएं करना प्रारंभ कर दिया था  साहित्यिक परिचय- उन्होंने विद्यालय से संस्कृत में एम ए  किया इनका विवाह नौ वर्ष की आयु में हो गया था परंतु उन्हो

गॉस की प्रमेय तथा आवेश घनत्व

 गॉस की प्रमेय    क्षेत्रफल सदिश(Area Vector) यदि क्षेत्रफल को दिश के साथ प्रदर्शित किया जाए तो उसे क्षेत्रफल सदिश कहते हैं । घन कोण (Solid Angle) किसी पृष्ठ का वह सूक्ष्म भाग केंद्र पर जो कोण बनाता है उसे घन कोण कहते हैं । इसको Ω से प्रदर्शित करते हैं । इसका मात्रक स्टेरेडियन होता है । घन कोण का अधिकतम मान अथवा संपूर्ण मान 4 π होता है । गौशियन पृष्ठ (Gaussian Angle) ऐसा बंद काल्पनिक 3D पृष्ठ जिस पर गौस प्रमेय लागू हो सके गौशियन पृष्ठ कहलाता है । वैद्युत फ्लक्स (Electric Flux ) वैद्युत पृष्ठ के लंबवत प्रति एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली विद्युत बल रेखाओं की संख्याओं को विद्युत फ्लक्स कहते हैं । सूत्र - Φ E = EA Cos θ  जहां θ विद्युत फ्लक्स एवं क्षेत्रफल के बीच का कोण है । इसे Φ E से प्रदर्शित करते हैं । इसका मात्रक न्यूटन मीटर/कूलाम होता है । यह एक सदिश राशि है । यदि किसी पृष्ठ में विद्युत बल रेखाएं प्रवेश करें तो Φ ऋणात्मक होगी और यदि किसी पृष्ठ से बल रेखाएं बाहर निकले तो Φ धनात्मक होगी । गॉस प्रमेय(Gauss Theorem) परिचय- इ लेक्ट्रोस्टैटिस से वैज्ञानिक गौस ने

वैद्युत द्विध्रुव बल आघूर्ण तथा स्थितिज ऊर्जा- अक्षीयस्थिति, निरक्षीय स्थिति

वैद्युत द्विध्रुव (Electric Dipole) दो बराबर विपरीत आवेश सूक्ष्म दूरी पर स्थित हो तो विद्युत द्विध्रुव बनता है ।  इसमें आवेशों के बीच की दूरी 2l होता है । इसका कुल आवेश शून्य होता है । उदाहरण- HCl, NaCl etc वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण(E lectric Dipole Momentum) वैद्युत द्विध्रुव के किसी एक आवेश के परिमाण और आवेशों के बीच की दूरी के सदिश गुणनफल को वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण कहते हैं । इसे P से प्रदर्शित करते हैं इसका मात्रक कूलाम मीटर होता है । यह एक सदिश राशि है । इसकी दिशा  -  से  +  की ओर होती है ।   सूत्र - q ×2l    वैद्युत  द्विध्रुव का बल आघूर्ण(Torque Of Electric  Dipole )   वैद्युत  द्विध्रुव और वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता के  सदिश  गुणनफल को वैद्युत  द्विध्रुव का  बल आघूर्ण  कहते हैं ।- τ=PESin θ इसको प्रदर्शित  τ  करते हैं।  इसका मात्रक न्यूटन  मीटर होता है।  यह एक सदिश राशि है।   τ   की दिशा P से E के  लंबवत अंदर की ओर अथवा बाहर की ओर होती है।  वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा(Potential Energy Of Electric Dipole)  वैद्युत द्विध्रुव को अनन्त से वैद्युत क्षेत्र तक लंब