जे कृष्णमूर्ति के शैक्षिक विचार जिस समय जे कृष्णमूर्ति ने अपने आध्यात्मिक एवं शैक्षिक विचारों का प्रचार-प्रसार प्रारंभ किया उस समय विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में नए नए अविष्कार हो रहे थे,सभी देश विज्ञान एवं तकनीकी पर आधारित शिक्षा पर बल दे रहे थे जिसके फलस्वरूप मानवीय पक्ष की अवहेलना होती जा रही थी उस समय जिस मानवीय शिक्षा को प्राप्त कर रहे थे वह जाति,धर्म,संस्कृति और क्षेत्र के बंधन में बंधी हुई थी जो बच्चों वे संकीर्ण मानसिकता का विकास कर रहे थे अतः उन्होंने मानव को मानवता की शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रचलित शिक्षा में कुछ परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया उसकी मानवीय शिक्षा से संबंधित विचार और उनकी रचनाएं क्रमशः "शिक्षा एवं जीवन का तात्पर्य" "शिक्षा संवाद" "सीखने की कला" तथा "स्कूल का नाम पत्र"में देखने को मिलता है इसकी शिक्षा संबंधित तत्व को क्रमबद्ध वर्णन लिखित रूप में वर्णित है शिक्षा का अर्थ जे कृष्णमूर्ति का मानना है कि वास्तविक शिक्षा वह है जो मनुष्य को आत्मज्ञान कराएं इस संदर्भ में उन्होंने स्वयं लिखा है कि "अंतर्मन का ज्ञान
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